विनोद बहल
एसोसिएटेड चैंबर ऑफ कॉमर्स (एसोचैम) ने 10 जुलाई, 2024 को नई दिल्ली में एक राष्ट्रीय रियल एस्टेट सम्मेलन का आयोजन किया, जिसका विषय था, ‘विकसित भारत के लिए रियल एस्टेट की बदलती गतिशीलता – अवसर और चुनौतियां‘। सम्मेलन में चार ज्ञान सत्र थे – ‘सार्वजनिक-निजी भागीदारी के साथ रियल एस्टेट को बदलना – नीतियां, सुधार और भविष्य की दिशा’, रियल एस्टेट परियोजनाओं का वित्तपोषण, सुरक्षा, संरक्षण और स्थिरता के साथ रियल एस्टेट का विकास ‘और’ रियल एस्टेट के क्षेत्र में निर्माण में नई तकनीकों का उपयोग।
सम्मेलन में बोलते हुए मुख्य अतिथि संजीव कुमार अरोड़ा, सदस्य, हरियाणा रेरा ने कहा कि रेरा घर खरीदने वालों और बिल्डरों के हितों की रक्षा करता है और इसने इस क्षेत्र के संगठित विकास में मदद की है। उन्होंने कहा कि रेरा की सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसके तहत 1.25 लाख आवासीय परियोजनाएं पंजीकृत की गई हैं और पीड़ित घर खरीदारों की शिकायतों में काफी कमी आई है। उन्होंने आगे बताया कि रेरा ने रियल एस्टेट में एफडीआई को बढ़ावा दिया है और इस क्षेत्र के दीर्घकालिक विकास के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी शुरू की गई है। उन्होंने डेवलपर्स से परियोजना के डिफॉल्ट होने से बचाने के लिए वित्तीय अनुशासन बनाए रखने का आह्वान किया और निवेशकों को प्रोत्साहित करने के लिए उधार दरों को तर्कसंगत बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
अपने स्वागत भाषण में एसोचैम के रियल एस्टेट, आवास और शहरी विकास पर राष्ट्रीय परिषद के चेयरमैन एवं सिग्नेचर ग्लोबल (इंडिया) लिमिटेड के चेयरमैन प्रदीप अग्रवाल ने कहा कि वर्तमान में रियल एस्टेट बाजार 24 लाख करोड़ रुपये का है और भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 13.8 प्रतिशत का योगदान दे रहा है, जिसके आने वाले वर्षों में 20 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र के विनियमित होने के बाद, 86 प्रतिशत से अधिक घर समय से पहले या समय पर वितरित किए गए हैं, जिससे खरीदारों और निवेशकों का विश्वास बढ़ा है। उन्होंने आगे कहा कि हालांकि बजट-पूर्व 3 करोड़ ग्रामीण घरों के निर्माण के लिए घोषणा की गई है, लेकिन बजट में कुछ और नीतिगत प्रोत्साहन मिलने, विशेष रूप से मध्यम वर्ग के लिए आवास को बढ़ावा देने की उम्मीद है।
रियल एस्टेट के बदलते स्वरूप के बारे में बात करते हुए विनीत रेलिया, डायरेक्टर, अर्बनब्रिक डेवलपमेंट मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड ने कहा कि एक समय था जब रियल एस्टेट सेक्टर जरूरत के आधार पर फलता-फूलता था, लेकिन अब रुझान उन्नति और जीवनशैली के विकल्पों की ओर स्थानांतरित हो गया है। यह विचार व्यक्त करते हुए कि आज ग्राहक सेवा से प्रेरित है, उन्होंने डेवलपर्स से ग्राहकों को संतुष्ट करने के लिए सेवा प्रदाता डीएनए को शामिल करने का आह्वान किया, विशेषकर इसलिए क्योंकि इतनी अधिक मात्रा में इन्वेंट्री को उच्च कीमतों पर बेचना एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने सरकार द्वारा एफोर्डेबिलिटी को बढ़ावा देने की आवश्यकता भी व्यक्त की।
गौरव जैन, सीईओ, इंडिया प्रोजेक्टंस इन्फ्राकोरप बहरीन ने बढ़ती कीमतों और एफोर्डेबल बने रहने की चुनौती के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने एफोर्डेबिलिटी को बढ़ावा देने के लिए एफएआर बढ़ाने और बुनियादी ढांचे में सुधार करने का सुझाव दिया। घटिया डिलीवरी मापदंडों के बारे में बात करते हुए, उन्होंने सेवा प्रदाताओं को आरईआरए के तहत कवर करने और उन्हें प्रोजेक्ट डिफॉल्ट के लिए जवाबदेह बनाने की आवश्यकता जताई।
आरवी वर्मा, पूर्व सीएमडी, राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी) एवं पूर्व चेयरमैन, एयू स्मॉल बैंक ने खास तौर पर आवास क्षेत्र की जटिल गतिशीलता को जिसमें केंद्र और राज्य स्तर पर कई हितधारक शामिल हैं, को देखते हुए मांग और आपूर्ति दोनों पक्षों के लिए निवेश की महत्ता के बारे में बात की, । उन्होंने लंबी अवधि के फंड के अप्रतिबंधित प्रवाह की चुनौती को पार करने के बारे में बताया। उन्होंने आवास को अधिकतम बनाने के लिए सही माहौल बनाने के लिए भूमि नीतियों की आवश्यकता पर भी बात की।
दक्षिता दास, पूर्व एमडी एवं सीईओ, एनएचबी ने आवास वित्त के संदर्भ में पर्याप्त एफोर्डेबल आवास उपलब्ध कराने की चुनौती के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि रियल एस्टेट डेवलपर्स को बैंकों के दरवाजे खटखटाने पड़ते हैं क्योंकि एनएचबी की देखरेख वाली अधिकांश हाउसिंग फाइनेंस कंपनियां घर खरीदने वालों को व्यक्तिगत ऋण प्रदान करती हैं और बहुत कम कंपनियां पर्याप्त डेवलपर ऋण पर विचार कर रही हैं। यह बताते हुए कि एनएचबी वर्तमान में निजी डेवलपर्स के लिए परियोजना के वित्तपोषण के लिए कोई योजना नहीं चला रहा है, उन्होंने डेवलपर्स को सहायता प्रदान करने के लिए ऐसी योजना शुरू करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
संजीव कथूरिया, फाउंडर एवं सीईओ, टॉरबिट कंसल्टिंग ने अनस्ट्रक्चर्ड रियल एस्टेट फाइनेंसिंग के बारे में बताया, जिसकी वजह से डेवलपर्स जमीन के लिए बैंक लोन प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें 20 प्रतिशत या उससे अधिक की उच्च ब्याज दर पर निजी इक्विटी फर्मों से जमीन के लिए फंडिंग प्राप्त करनी पड़ती है। भूमि और निर्माण के लिए उच्च ब्याज दरों के साथ-साथ परियोजना की मंजूरी मिलने में होने वाली देरी परियोजनाओं को वित्तीय रूप से अव्यवहारिक बनाती है। उन्होंने परियोजनाओं को वित्तीय रूप से व्यवहार्य बनाने के लिए कम लागत पर निर्माण निधि प्रदान करने और परियोजनाओं के लिए स्वीकृति समय को कम करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
रुकी हुई आवासीय परियोजनाओं की समस्या से निपटने के बारे में बात करते हुए, सुश्री सोनल मेहता, सीनियर वीपी– स्ट्रेटिजी एवं एलाईंस, रिसर्जेंट इंडिया ने ‘स्वामीह फंड’ की तर्ज पर नए फंड शुरू करने के अलावा डेवलपर्स के लिए नवीन वित्तपोषण नीतियां लाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
इस सम्मेलन के दौरान, एसोचैम और रिसर्जेंट इंडिया द्वारा ‘रियल एस्टेट की बदलती गतिशीलता, अवसर और चुनौतियां‘ विषय पर एक संयुक्त नॉलेज़ रिपोर्ट भी जारी की गई।
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